प्रभुकृपा से यह संसार गतिशील है। सब प्राणी गतिशील हैं, उनके लिये कर्म करते रहना आवश्यक है। कर्म से ही यह संसार-जीवन चल पाता है। कर्म से जीवन में सुख व सुख-साधनों की प्राप्ति होती है, दुःख व दुःख को कारणों का हटाया जाता है। सुख-शांति से जीने के लिये शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के कर्म आवश्यक हैं। यदि कोई प्राणी कर्म न करना चाहे तो भी बिना कर्म के रह नहीं सकता। भूख-प्यास आदि दुःख व सुुःख का आवेग इतना कष्टदायक होता है कि व्यक्ति को कर्म करने ही होते हैं। कर्म करने में चूंकि कष्ट होता है, अतः हम कर्म से बचते हुए दुःख की निवृत्ति व सुख की प्राप्ति चााहने लगते हैं। तब हम अल्प श्रम वाले अधर्म का मार्ग पकड़ लेते हैं। इस से हम अधिक दुुुःखी हो जाते हैं, अस्वस्थ हो जाते हें।
मुख्य कार्यालय:
वानप्रस्थ साधक आश्रम,
आर्यवन, रोजड़, पत्रा.-सागपुर,
त.-तलोद, साबरकांठा, गुजरात-383307. दूरभाष - 95028 63490, 8290896378.